–सोनाली मिश्रा
स्त्री बुद्ध के समय प्रथम प्रचारक बनी. पुरुषों के साथ कदमताल करते हुए न जाने कितने देशों की यात्रा की. अपने बुद्ध का सन्देश लेकर गयी. उससे पहले सूर्या सावित्री ने रचे थे विवाह के सूक्त!
हमने स्त्री के ब्रह्मचारिणी रूप की भी पूजा की. स्त्री शक्ति थी. उस शक्ति को सनातन ने पहचाना, उस शक्ति को बुद्ध ने पहचाना, उस शक्ति को जैन धर्म में पहचाना. सभी ने सम्मान दिया. स्त्री को इतना स्वतंत्र किया कि वह प्रश्न उठा सकें. वह एक विवाह से संतुष्ट नहीं तो दूसरा क⋅र सकें और उसके उपरान्त भी यदि संतुष्ट नहीं है तो वह बौद्ध धर्म में दीक्षा ले कर संन्यासी बन सकें या फिर किसी और सम्प्रदाय की भी दीक्षा ले लें. मीरा ने कृष्ण को मान लिया पति तो मान ही लिया. इधर पंद्रहवी शताब्दी में मीरा कृष्ण को अपना पति मानकर सम्मानित हो सकती थीं, वह रैदास को अपना गुरु मान सकती थीं. और उधर हमें पिछड़ा बताने वाले गोरे लोग पंद्रहवीं शताब्दी तक स्त्रियों को चुड़ैल और डायन मानते थे.
इधर हमारे यहाँ रजिया सुल्ताना को तेरहवीं शताब्दी में ही उसके पिता द्वारा गद्दी सौंप दी जाती थी और उधर सुदूर पश्चिम में जो लोग हमें हमारे परिधानों से पिछड़ा साबित करते थे उनके यहाँ बारहवीं शताब्दी में स्त्रियों को स्त्री ही नहीं माना जाता था, वह मदर मेरी और पुरुषों को स्वर्ग से धकेलने वाली के बीच फंसी थी. दसवी शताब्दी तक चर्चों में ननों को पढने लिखने का अधिकार नहीं था. जहां भारत में मुगलों की शहजादियाँ, राजपूतों की राजकुमारियां और साधारण लड़कियों को भी पढने का अधिकार था, वहीं हमें हर कदम पर पिछड़ा बताने वालों ने अपने यहाँ की स्त्रियों को चर्च तक में पिछड़ा रखा. नन अपनी स्मृतियों से ही याद करती थीं, किताबों से नहीं.
और एक बात, भारत में स्त्रियों को डायन बताने वाली परम्परा कब से आरम्भ हुई? मुग़ल काल तक हमें स्त्री को चुड़ैल या डायन की कहानियां नहीं मिलती हैं. खोजिये. जब अंग्रेजों ने संस्कृति का अनुवाद किया तो उन्होंने हमारी छोटी छोटी कुरीतियों को, जो कई आक्रमण के कारण समाज में उत्पन्न हो गयी थीं, उन्हें बडाकर दिखाया और अपनी कुरीतियों को जिसने हजारों की जानें लीं और जिसका नामोनिशान तक भारत में अंग्रेजों के आने से पहले तक नहीं था उसे छिपा लिया. जहां तक मुझे लगता है.
स्त्री के सम्बन्ध में पश्चिम ने एशिया पर अपने सिद्धांतों का गलत अनुवाद थोपा. रजिया सुल्ताना, मीरा बाई, जीजाबाई, रोशन आरा, जहां आरा, यह सब स्त्रियाँ भारत में ही थीं और खुलकर अपने मत रखने वालीं थीं. खुलकर लिखने पढने वाली थीं, सत्ता में हस्तक्षेप करने वाली थीं. यह मैं केवल मध्यकालीन स्त्रियों की बात कर रही हूँ. स्त्रियों में डायन का आना कब से आरम्भ हुआ, भारत में वनवासियों में भी स्त्रियों को डायन कब से कहना आरम्भ हुआ, इस विषय में शोध होना चाहिए.
भारत में नहीं बल्कि पश्चिम में विच हंटिंग नामक खेल हुआ करता था. और इस खेल में उन स्त्रियों की पहचान की जाती थी जिनका कोई होता नहीं था. उन पर आरोप लगाया जाता था. और फिर उन्हें घेर कर मारा जाता था. जिस समय यूरोप में यह काला दौर चल रहा था, उन दिनों भारत भी मुगलों के आक्रमण से गुजर रहा था, परन्तु भारत में स्त्रियाँ चाहे वह हिन्दू हों या मुसलमान इस संक्रमण काल से गुजरते हुए भी समाज और राजनीति में अपना स्थान उच्च रखे हुए थीं. वह कोटारानी के रूप में अपने पूरे प्रदेश की रक्षा किए हुए थी. यह कोई साधारण स्त्री नहीं थी
इतिहासकारों के मुताबिक़ यूरोप में जादू टोने के चक्कर में जहां चालीस हज़ार से लेकर एक लाख हत्याएं हुईं वहीं उनका यह भी कहना है कि यह संख्या तीन गुना तक अधिक हो सकती है.
इतिहासकारों का यह भी कहना है कि हालांकि जादू टोने के चक्कर में पुरुषों की भी जान गयी मगर यह भी सच है कि इनमें एक तिहाई से अधिक स्त्रियाँ थीं.
और इन्होनें हमसे आकर कहा कि तुम्हारे यहाँ औरतों को अधिकार नहीं! या यह कहा जाए कि अंग्रेजों ने आकर ही हमें और पिछड़ा किया. पश्चिम के नाम पर स्त्रियों को केवल देह और कपड़ों तक सीमित कर दिया. स्त्री की सोच को सीमित किया, और जहां वह पहले सत्ता को साधती थी, बाद में बाज़ार उसे साधने लगा.
भारत में साडी एवं पारंपरिक परिधान पहनकर स्त्रियाँ युद्ध करने जाती थीं तो अंग्रेजों को वाकई समझ नहीं आता होगा कि उनके सामने कौन है? स्त्री पढ़ कर शास्त्रार्थ कर सकती है, सत्ता बदलने में योगदान कर सकती है, यह सब उनकी सोच से परे था. यह अंग्रेज ही थे जिन्होनें आपकी संस्कृति के मूल ढाँचे पर प्रहार किया और गुलामी की भावना आपके भीतर भरी. भारतीय स्त्री कभी गुलाम नहीं थी. यह अनूदित गुलामी थी,
और आप सोचते हैं कि अनुवाद एक छोटी और साधारण कला है? जो भारत मुग़ल काल तक स्त्री को लेकर सम्मानजनक नजरिया अपनाए था उसे उन्होंने पिछड़ा अनूदित कर दिया और जिस समाज ने स्त्री को डायन बनाकर सबसे पहले प्रताड़ित किया उसे संभ्रांत और सभ्य घोषित कर दिया. और हम आज तक वही ढपली बजा रहे हैं