!!”देखते-ही-देखते आरियां चली और लाशों के ढेर लग गए। इधर विकास, उधर लाश!! ये हरे-भरे पेड़ थे, जो विकास के लिए अपनी बलि दे रहे थे






















लघुकथा/ बलि…


Girish Pankaj


अपने-अपने हाथों में आरियां लेकर वे लोग बढ़े जा रहे थे । सबकी जुबान पर एक ही नारा था, “विकास.. विकास ..विकास !!”देखते-ही-देखते आरियां चली और लाशों के ढेर लग गए।
इधर विकास, उधर लाश!! ये हरे-भरे पेड़ थे, जो विकास के लिए अपनी बलि दे रहे थे। उनकी आंखों में आंसू थे लेकिन किसी को नजर नहीं आ रहे थे । लोग चीख रहे थे, पुकार रहे थे कि “इन्हें मत काटो। ये कटेंगे तो एक दिन हम सब तबाह हो जाएंगे” लेकिन आरी थामे हाथों को विकास की जल्दी थी । हत्यारे रुके नहीं। झुके नहीं। और विकास की बलि-वेदी पर सदियों पुराने पेड़ शहीद होते चले।